Friday, January 20, 2012

दशानन विरचितं ताण्डव स्तोत्रम्


   जटाटवीगल्लज्जलप्रवाहपावितस्थले 
गलेवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम् ।
डमद् डमद् डमद्डमन्निनादवद्डमर्वयमं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ।।
 
जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी –
विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्द्धनि
धगद्धगद्धगज्ज्वल्लललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम् ।।
 
धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर –
स्फुरदिगन्तसन्ततिप्रमोद-मानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरिणीनिरूद्धदुर्धरापदि
क्कचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ।।
 
जटाभुजंगपिंगलत्फुरत्फणामणिप्रभा –
कदम्ब कुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ।।
 
सहस्रलोचनप्रभृत्य​शेषलेखशेखर –
 प्रसूनधूलिधोरणी विधू सराङ्घ्रि पीठभूः
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ।।
 
ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिंगभा –
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालि सम्पदे शिरो जटालमस्तु नः ।।
 
करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल –
द्धनञ्जयाहुतीकृत प्रचण्डपन्चसायके।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक –
प्रकल्पनैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम​।।
 
नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्
कुहूनिशीथिनी तमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः।
निलिम्प निर्झरीधरस्तनोतु कृत्ति सिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरन्धरः ।।
 
प्रफुल्लनीळपंकजप्रपञ्चकालिमप्रभा –
वलम्बिकण्ठकन्दलीरूचि – प्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमकच्छिदं भजे ।।
 
अखर्वसर्वमङ्ळाकलाकदम्बमञ्जरी –
रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकम्
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ।।
 
जयत्व दभ्र विभ्रम भ्रमद्भुजङ्गमश्वसद्
विनिर्गमत्क्रम स्फुरत्करालभाल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धिमिदध्वनन्मृदंङगतुंङ्गमंङ्ळ –
ध्वनिक्रम प्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः॥
 
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजो –
र्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवम् भजाम्यहम ।।
 
कदानिलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् –
विमुक्तिदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् ।
विलोललोललोचनो ललामभाललग्रकः
शिवेतिमन्त्रमुञ्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ।।
 
इमं हि नित्यमेवमुक्तमुक्तमोत्तमं स्तवं –
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेति सन्ततम् ।
हरे गुरौ सुभक्ति माशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य​ चिंतनम् ।।
 
पूजावसान समये दशवक्त्रगीतम् –
यः सम्भु पूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां –
लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः॥   

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